रोजाना दफ्तर जाने के लिए मैं 50 किलोमीटर का सफर तय करती हू। मेरे सफर मे एक main bus stop और बाकी 5-7 गांव के छोटे bus stop आते, हर stop पर कुछ यात्री चढ़ते और उतरते। हर रोज का सफर कुछ ना कुछ नया सिखा जाता और सफर मे कई तरह की बाते हो जाती। कुछ इसी तरह की बात मेरे मन के अन्दर गहरी छाप छोड गई और साथ मे कुछ सवाल भी।
मैं एक दिन जब दफ्तर जा रही थी एक गांव के stop से एक औरत अपने छोटे बच्चे के साथ बस मे चढ़ी। बस मे उसके बैठने के लिए सीट नही थी। वो अपना बच्चा उठाए अकेली ही बस मे खड़ी थी। देखने मे बहुत गरीब थी और शयाद एक मजदूर औरत हो। वो बहुत मुश्किल से बच्चा संभाल कर खड़ी थी । 5 -10 मिनट हो गए, पर किसी ने भी उसे बैठने के लिए सीट ना दी।
मैं चाहती थी कि उसे अपनी सीट बैठने के लिए दे दूँ, लेकिन खुद गर्भवती होने के कारण ये मेरे लिए मुश्किल था। मैं मन ही मन मे उसे सीट ना देने के कारण दुखी थी। इतने मे अगला stop गया । पर कोई भी सवारी नीचे ना उतरी और ना ही उस औरत को सीट मिली । stop से college जाने वाली तीन चार लड़कियां बस मे चढ़ी । 1-2 मिनट मे किसी ना किसी ने उन लड़कियों को सीट दे दी ।
अब यह सब देखकर मेरे मन मे बहुत सारे सवाल खड़े हो गए । क्या उन लड़कियों के हाथों मे पकड़ी किताबे उस औरत के हाथो मे पकड़े हुए बच्चे से भारी थी, जो उन्हें पकड़ कर खड़े रहना मुश्किल हो जाता ? क्या एक औरत का सम्मान अमीरी और गरीबी देखकर किया जाता है ?क्या एक गरीब और माँ जो एक औरत है उसके प्रति लोग अपना नजरिया सहायता वाला नही रख सकते ? क्या एक माँ को सीट देकर उन लड़कियों को सीट देने से ज्यादा संतुष्टी नही मिलती। लोगो की यह सोच अमीरी और गरीबी देखकर मदद करना मेरे दिल मे गहरी चोट पहुंचा गई ।
मैं एक दिन जब दफ्तर जा रही थी एक गांव के stop से एक औरत अपने छोटे बच्चे के साथ बस मे चढ़ी। बस मे उसके बैठने के लिए सीट नही थी। वो अपना बच्चा उठाए अकेली ही बस मे खड़ी थी। देखने मे बहुत गरीब थी और शयाद एक मजदूर औरत हो। वो बहुत मुश्किल से बच्चा संभाल कर खड़ी थी । 5 -10 मिनट हो गए, पर किसी ने भी उसे बैठने के लिए सीट ना दी।
मैं चाहती थी कि उसे अपनी सीट बैठने के लिए दे दूँ, लेकिन खुद गर्भवती होने के कारण ये मेरे लिए मुश्किल था। मैं मन ही मन मे उसे सीट ना देने के कारण दुखी थी। इतने मे अगला stop गया । पर कोई भी सवारी नीचे ना उतरी और ना ही उस औरत को सीट मिली । stop से college जाने वाली तीन चार लड़कियां बस मे चढ़ी । 1-2 मिनट मे किसी ना किसी ने उन लड़कियों को सीट दे दी ।
अब यह सब देखकर मेरे मन मे बहुत सारे सवाल खड़े हो गए । क्या उन लड़कियों के हाथों मे पकड़ी किताबे उस औरत के हाथो मे पकड़े हुए बच्चे से भारी थी, जो उन्हें पकड़ कर खड़े रहना मुश्किल हो जाता ? क्या एक औरत का सम्मान अमीरी और गरीबी देखकर किया जाता है ?क्या एक गरीब और माँ जो एक औरत है उसके प्रति लोग अपना नजरिया सहायता वाला नही रख सकते ? क्या एक माँ को सीट देकर उन लड़कियों को सीट देने से ज्यादा संतुष्टी नही मिलती। लोगो की यह सोच अमीरी और गरीबी देखकर मदद करना मेरे दिल मे गहरी चोट पहुंचा गई ।
nice story
ReplyDeletenyc story
ReplyDeletestory bhut achi hai. pr eh sirf ek story nhi aj de loka d soch hai. jo mann vich ameeri gribi da bhedbhav rakhde hn
ReplyDeleteVery nicely written
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