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Tuesday, November 6, 2018

खुशी के दीपक | khushi k deepak | Hindi Kahani


HAPPY DIWALI TO ALL OF YOU


प्यार और खुशियां बांटने से यह दोगुनी होने के  साथ साथ    हमारे आसपास का माहौल भी खुशियो से भर जाता है। इस बात को मैनें ठीक से तब महसूस किया जब मै पढ़ने के लिए   बस से शहर तक का सफर करता था। रास्ते मे कुछ  कुम्हारो के कच्चे घर  आते और कुम्हार घरो के बाहर बैठे मिट्टी के बर्तन बनाते रहते  । मै वहा काम करते कुम्हारो  को देखकर अक्सर भावुक हो जाता और उनके रहन सहन के बारे मे सोचने लगता।

        रोज उनके सामने से गुजरते हुए भावुकता का एहसास होता। बस जब उनकी बस्ती से थोड़ी दूर आगे जाती, रास्ते मे छोटे छोटे बच्चे  पैदल अपने स्कूल की तरफ जाया करते। वह बच्चे उन्ही कुम्हारो के बच्चे थे जो मुझे रास्ते मे दिखाई देते। गरीब परिवारो से होने के कारण ना तो उनके पास कोई साईकिल था और ना ही वह बस मे सफर कर सकते थे । बस का कंडक्टर भी उन्हे बड़े भावुकता से देखा करता  ।



      एक दिन कंडक्टर ने बस कुम्हारो की बस्ती के सामने रुकवा ली। कंडक्टर बस से नीचे उतर उन कुम्हारो के पास जा के कुछ बातचीत करने लगा । मेरे मन मे एक बार तो आया के कुम्हारो और कंडक्टर के बीच क्या बातचीत हुई होगी । दूसरे दिन जब बस कुम्हारो की बस्ती के पास गई और कंडक्टर ने फिर से बस रुकवा ली पर इस बार वो उतरा नही बल्कि कुम्हारो के बच्चे बस मे चढ़ गए । यह देखकर मुझे बहुत खुशी हुई ।  हैरानी तो मुझे तब हुई जब कंडक्टर ने बिना टिकट के उन बच्चो को स्कूल के सामने उतार दिया । इस बात से मुझे और भी खुशी हुई और मै उस समय कंडक्टर और कुम्हारो के बीच हुई बातचीत को समझ चुका था ।

    अब रोज ही बच्चे बस मे स्कूल जाने लगे । बस का ड्राइवर अक्सर जब बस बस्ती के सामने रूकती तो गुस्से मे आ जाता । एक दिन मे आगे वाली सीट पर बैठा हुआ था । ड्राइवर ने कंडक्टर से कहा के तुम इन बच्चो के चक्कर मे बस को देरी करवा देते हो और इनसे किराया भी नही लेते । कंडक्टर मुस्कुरा दिया और बोला कि इनकी खुशी ही हमारा किराया है। कंडक्टर ने ड्राइवर को गुस्सा ना करने को कहा ।

      ऐसे ही दिन बीतते चले गए । दीवाली का त्योहार पास आ गया । कुम्हारो की दुकाने सज गई,  तरह तरह के मिट्टी से बने दिए सबको आकर्षित करने लगे । दीवाली से दो दिन पहले स्कूल जाने के लिए जब बच्चे बस मे चढ़े तो उनके हाथ  मे दो थैले  पकड़े हुए थे । वह थैले  बहुत भारी लग रहे थे । उन बच्चो ने थैले  कंडक्टर को दे दिए और कंडक्टर से कहा कि एक थैला ड्राइवर अंकल को दे दें।

       कंडक्टर ने एक थैला ड्राइवर की सीट के पास रख दिया और कहा कि यह कुम्हारो के बच्चे तुम्हारे लिए लाए है ।  शाम को जब कंडक्टर और ड्राइवर अपने काम से घर चले गए, ड्राइवर ने घर पहुंच कर उस थैले  को खोला तो उसकी आंखे खुशी से नम हो गई । उस थैले   मे बहुत सरे दीपक थे।  दीवाली के बाद जब फिर से स्कूल शुरू हुए तो ड्राइवर खुद ही कुम्हारो की बस्ती के सामने बस को रोक देता और खुशी खुशी बच्चो को बस मे चढ़ा लेता।

     

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