आज रमेश का अपनी नौकरी पर पहला दिन था। वह अपने ही शहर के सरकारी विभाग मे क्लर्क लग गया । उसे यह नौकरी पाने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा । बहुत सारे इम्तिहान पास करने के बाद और मेहनत के बाद आखिरकार रमेश सरकारी विभाग मे क्लर्क लग गया । इस नौकरी को लेकर उसके और उसके घरवालो के बहुत सारे सपने जुड़े हुए थे। रमेश ने सोच रखा था कि वह ईमानदारी से नौकरी करेगा और अपने घर की आर्थिक स्थिति को बेहतर करेगा । उसने सोच रखा था कि वह दफ्तर मे सबसे मिलजुल कर काम करेगा और बढि़या से बढि़या काम करने की कोशिश करेगा ।
रमेश जब दफ्तर पहुंचा तो सबसे पहले उसने सब के साथ जान पहचान की, सभी ने एक हल्की मुस्कराहट के साथ उसका अभिवादन किया । दफ्तर के एक कर्मचारी ने रमेश को उसके बैठने का स्थान बताया और उसे काम समझाने लगा। रमेश कुर्सी पर बैठ कर बहुत खुश हुआ और उसे लगा कि जैसे उसके सारे सपने पूरे हो गए हो। रमेश का कमरा अलग से था और उसका दरवाजा उपर से टूटा हुआ था । दफ्तर की हालत भी कुछ अच्छी नही थी। पहला दिन होने के कारण सब उसके पास आ रहे थे। उसके पास बैठकर बातें कर रहे थे।
नीरज भी उसी दफ्तर मे काम करता था । दोपहर के समय जब रमेश अकेला बैठा काम कर रहा था तो नीरज रमेश के साथ आकर बैठ गया । बातों ही बातों मे नीरज ने रमेश से कहा कि वह यहां बड़े ध्यान से काम करें क्योंकि यहां काम करने वाले लोग बड़े चालाक है। नीरज के बाद दफ्तर के दो और कर्मचारी बारी बारी रमेश के पास आए उन्होंने भी रमेश से यही बात दोहराई । रमेश को यह बात बड़ी अटपटी लगी। अब रमेश को अपने दफ्तर का थोड़ा बहुत अंदाज़ा तो हो ही चुका था ।
अगले दिन जब रमेश दफ्तर पहुंचा, तो रमेश के वरिष्ठ अधिकारियों ने उसे काम के लिए बहुत सी फाइल पकड़ा दी। रमेश यह देखकर खुश हुआ कि उसे करने के लिए काम दिया जा रहा है। वह मन मे सोचने लगा कि वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेगा। धीरे-धीरे सब अधिकारी उसे काम देने लगे। रमेश खुश भी था और असमंजस मे भी था क्योंकि हर कोई अपने हिस्से का काम भी उसे सौंप जाता । रमेश जब भी अपने वरिष्ठ अधिकारियों से काम कम देने को कहता तो सब उस पर चिल्लाने लग जाते। कोई ना कोई उसे कुछ ना कुछ कह जाता कभी उसके काम करने पर टिप्पणी तो कभी रमेश के स्वभाव पर टिप्पणी । अब रमेश समझ चुका था कि जानबूझकर उसका उत्पीड़न हो रहा है।
यहां एक तरफ पूरे दफ्तर मे एक दूसरे पर बातें और एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लगी रहती थी। वही दूसरी तरफ लोग अपना काम जल्दी करवाने के लिए रिश्वत भी दे जाते थे। रमेश एक अकेला ही अधिकारी था जो रिश्वत नही लेता था । इसी बात से पूरा दफ्तर रमेश से चिड़ा हुआ था।
नीरज एक दिन रमेश के कमरे मे गया, और कहने लगा कि इतने ईमानदार मत बनो जानबूझकर । ईमानदारी दिखा के कुछ फायदा नही है। अगर इतने ही ईमानदार हो तो अपनी तनख्वाह से अपने कमरे और दरवाजे को तो ठीक करवा लो। यह सब बातें रमेश को बहुत चुभ रही थी।
हर कोई रमेश के कमरे मे आंखे दिखाता हुआ आता और कुछ ना कुछ सुना जाता । कुछ दिनो तक तो रमेश सोचता ही रहा कि अब वो क्या करें। उसने एक दो बार असतीफा देने का भी सोच लिया था । लेकिन उसे लगा अगर वो डर कर असतीफा दे देगा तो क्या गारंटी है कि जो उसे अगली नौकरी मिलेगी वहा ऐसे लोग नही होंगे । एक दिन उसने ठान लिया कि वह भी सब से अकड़ कर बात करेगा । अब सब हैरान से हो गए थे कि रमेश को क्या हो गया है। रमेश अब सिर्फ अपने हिस्से का काम करता था। वरिष्ठ अधिकारियो ने रमेश से कह कि वह रमेश के इस रवैये के बारे मे ऊपर शिकायत करेंगे । लेकिन रमेश ने भी फट से जबाब दिया, वह भी तुम्हारी रिशवत खौरी को सबके सामने उजागर करेगा । इतना सुनते ही सब अधिकारी घबरा गए ।
एक दिन रमेश ने अपना कमरा भी ठीक करवा लिया । रमेश ने भी जानबूझकर कमरे के दरवाजे की लम्बाई छोटी करवा दी। अब डब भी कोई रमेश के कमरे मे आता तो उसे सिर झुका कर आना पड़ता । दफ्तर के सभी अधिकारी रमेश की मंशा समझ चुके थे । अब सब रमेश को उसके हिस्से का ही काम देते और फालतू मे रमेश चिल्लाते भी नही थे। और तो और रमेश के कमरे मे दरवाजा छोटा होने के कारण अधिकारी कम जाने लगे थे।
रमेश जब दफ्तर पहुंचा तो सबसे पहले उसने सब के साथ जान पहचान की, सभी ने एक हल्की मुस्कराहट के साथ उसका अभिवादन किया । दफ्तर के एक कर्मचारी ने रमेश को उसके बैठने का स्थान बताया और उसे काम समझाने लगा। रमेश कुर्सी पर बैठ कर बहुत खुश हुआ और उसे लगा कि जैसे उसके सारे सपने पूरे हो गए हो। रमेश का कमरा अलग से था और उसका दरवाजा उपर से टूटा हुआ था । दफ्तर की हालत भी कुछ अच्छी नही थी। पहला दिन होने के कारण सब उसके पास आ रहे थे। उसके पास बैठकर बातें कर रहे थे।
नीरज भी उसी दफ्तर मे काम करता था । दोपहर के समय जब रमेश अकेला बैठा काम कर रहा था तो नीरज रमेश के साथ आकर बैठ गया । बातों ही बातों मे नीरज ने रमेश से कहा कि वह यहां बड़े ध्यान से काम करें क्योंकि यहां काम करने वाले लोग बड़े चालाक है। नीरज के बाद दफ्तर के दो और कर्मचारी बारी बारी रमेश के पास आए उन्होंने भी रमेश से यही बात दोहराई । रमेश को यह बात बड़ी अटपटी लगी। अब रमेश को अपने दफ्तर का थोड़ा बहुत अंदाज़ा तो हो ही चुका था ।
अगले दिन जब रमेश दफ्तर पहुंचा, तो रमेश के वरिष्ठ अधिकारियों ने उसे काम के लिए बहुत सी फाइल पकड़ा दी। रमेश यह देखकर खुश हुआ कि उसे करने के लिए काम दिया जा रहा है। वह मन मे सोचने लगा कि वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेगा। धीरे-धीरे सब अधिकारी उसे काम देने लगे। रमेश खुश भी था और असमंजस मे भी था क्योंकि हर कोई अपने हिस्से का काम भी उसे सौंप जाता । रमेश जब भी अपने वरिष्ठ अधिकारियों से काम कम देने को कहता तो सब उस पर चिल्लाने लग जाते। कोई ना कोई उसे कुछ ना कुछ कह जाता कभी उसके काम करने पर टिप्पणी तो कभी रमेश के स्वभाव पर टिप्पणी । अब रमेश समझ चुका था कि जानबूझकर उसका उत्पीड़न हो रहा है।
यहां एक तरफ पूरे दफ्तर मे एक दूसरे पर बातें और एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ लगी रहती थी। वही दूसरी तरफ लोग अपना काम जल्दी करवाने के लिए रिश्वत भी दे जाते थे। रमेश एक अकेला ही अधिकारी था जो रिश्वत नही लेता था । इसी बात से पूरा दफ्तर रमेश से चिड़ा हुआ था।
नीरज एक दिन रमेश के कमरे मे गया, और कहने लगा कि इतने ईमानदार मत बनो जानबूझकर । ईमानदारी दिखा के कुछ फायदा नही है। अगर इतने ही ईमानदार हो तो अपनी तनख्वाह से अपने कमरे और दरवाजे को तो ठीक करवा लो। यह सब बातें रमेश को बहुत चुभ रही थी।
हर कोई रमेश के कमरे मे आंखे दिखाता हुआ आता और कुछ ना कुछ सुना जाता । कुछ दिनो तक तो रमेश सोचता ही रहा कि अब वो क्या करें। उसने एक दो बार असतीफा देने का भी सोच लिया था । लेकिन उसे लगा अगर वो डर कर असतीफा दे देगा तो क्या गारंटी है कि जो उसे अगली नौकरी मिलेगी वहा ऐसे लोग नही होंगे । एक दिन उसने ठान लिया कि वह भी सब से अकड़ कर बात करेगा । अब सब हैरान से हो गए थे कि रमेश को क्या हो गया है। रमेश अब सिर्फ अपने हिस्से का काम करता था। वरिष्ठ अधिकारियो ने रमेश से कह कि वह रमेश के इस रवैये के बारे मे ऊपर शिकायत करेंगे । लेकिन रमेश ने भी फट से जबाब दिया, वह भी तुम्हारी रिशवत खौरी को सबके सामने उजागर करेगा । इतना सुनते ही सब अधिकारी घबरा गए ।
एक दिन रमेश ने अपना कमरा भी ठीक करवा लिया । रमेश ने भी जानबूझकर कमरे के दरवाजे की लम्बाई छोटी करवा दी। अब डब भी कोई रमेश के कमरे मे आता तो उसे सिर झुका कर आना पड़ता । दफ्तर के सभी अधिकारी रमेश की मंशा समझ चुके थे । अब सब रमेश को उसके हिस्से का ही काम देते और फालतू मे रमेश चिल्लाते भी नही थे। और तो और रमेश के कमरे मे दरवाजा छोटा होने के कारण अधिकारी कम जाने लगे थे।
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