Please Do not try to copy content

Thursday, July 9, 2020

शाम की सैर | sham ki sair

मैं हर रोज शाम को सैर करने जाता । थोड़ी ही दूर  रास्ते के किनारे एक छोटा सा घर है जिसके सभी लोग शाम को बाहर चारपाई लगा कर बैठे रहते है । बाहर से ही देखने पर उनके घर का पता चल जाता है । उनके घर मे दो छोटे छोटे कमरे है और बाहर की तरफ थोड़ी सी खुली जगह है जिसके ऊपर छत नही है। घर का नक्शा ऐसा है कि हवा आर पार होती रहे । घर के चारो तरफ हरे भरे खेत और पेड पौधे है।

जब भी कोई सैर करने वाला उनके घर के पास से गुजरता तो उनके घर की तरफ जरूर देखता। जितने भी  लोग वहां सैर करने आते सारे आस पास के इलाके से ही सम्बंधित है ।
एक दिन उस घर के सामने उसी घर का बड़ा बुजुर्ग बैठा हुआ था । तो मैंने रूक कर उनका हाल चाल पूछ लिया । बातों ही बातो मे मैने उन से पूछा के उनका घर चलाने के लिए क्या काम करते है तो उन्होंने बताया कि हम सब मजदूरी का काम करते है। थोड़ी बहुत बात करने के बाद मे आगे की तरफ चल दिया ।

      हमारे मुहल्ले मे सभी घर तकरीबन एक जैसे ही बने हुए है। सारे मध्यम वर्गीय परिवार ही रहते है। सभी घर अंदर और बाहर से देखने मे बेहद खूबसूरत । और हो भी क्यों ना सभी ने अपनी कड़ी मेहनत से और खून पसीने की कमाई से घर बनाए। तो घरों का नक्शा इस तरह है सबसे पहले आता है एक बड़ा सा गेट । उसके बाद इतनी जगह के कार, मोटर साइकिल और अन्य व्हीकल खड़े हो सके। यह सब व्हीकल खड़े करने के बाद अगर जगह बच जाए तो ठीक नही तो केवल घर के मेन गेट से कमरे के दरवाजे तक गुजरने के लिए ही जगह बचती है।

उस बरामदे को जिस के चारो तरफ दीवारे है और ऊपर छत है। अगर बाहर की तरफ देखना हो तो मैन गेट से बाहर जाना पडे। बरामदे के एक तरफ आता है मेहमानो के लिए कमरा ओर उसके बाद लाबी , दो कमरे,  एक रसोई घर। पीछे की तरफ शौचालय और स्नान घर बने हुए । हमारे मुहल्ले मे सभी घर चारो तरफ से बंद है मानो जैसे एक बंद डिब्बा । अगर हमे ताजी हवा मे घूमना हो या फिर बारिश का मजा लेना हो तो हमे या तो बाहर गली मे जाना पडता है या फिर छत पर जाना पडता है।

             हमारे मुहल्ले मे सभी की शिकायत रहती है कि घर के आगे और पीछे की तरफ आंगन होना चाहिए , ताकि बच्चे खेल कूद सके। हमारे पडोसी का तो इतना बड़ा घर है फिर भी वो कहता है कि ऊपर दो कमरे ओर बनाने है। मुहल्ले मे कई लोगो को तो अपने घरो के नक्शे ही नही पसन्द। एक ओर मजेदार मुहल्ले मे 8 10 ऐसे भी है जो बहुत ही ज्यादा बड़े, महल जैसे । पर उनमे दो दो जन ही रहते है।

एक दिन जब मे सैर करने गया । उस छोटे से घर के जो रास्ते मे आता है , के सभी लोग घर के बाहर बैठे हुए थे ।
अंकल ने मुझे रोक लिया और हाल चाल पूछने लगे। वहां पर आंटी भी बैठी थी तो उन्होंने मुझे से पूछ लिया कि तुम्हारा किस तरफ है । मैंने बताया कि पीछे की तरफ है । तो आंटी बोलने लगी " अरे वाह! वहां तो घर ही बड़े सुन्दर है । बड़े बड़े ओर पूरे बंद । ना अंदर बारिश जाने का डर, ना ज्यादा
धूप जाने का डर । हमारा घर देखो तेज धूप पड़ती है। बरामदे मे बारिश का पानी खड़ा हो जाता है । बच्चे सारा दिन मिट्टी मे खेलते रहते है।" आंटी की इन बातो ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।

इंसान के पास कम हो या ज्यादा,  इंसान कभी भी किसी भी चीज से जल्दी संतुष्ट नही हो सकता ।

बेरोजगारी एक बिमारी | Berozgari Ek Bimari

बेरोजगारी समाज मे एक बहुत भयानक बिमारी है। यह किसी भी देश को अंदर ही अंदर से खोखला कर देती है। बेरोजगारी के अनेको कारण हो सकते है। बेरोजगारी दर सत् प्रतिशत तो कभी मिटती नही। अगर यह एक निश्चित दर से आगे बढ़ जाए तो गम्भीर समस्या बन जाती है। हमारे देश मे करोड़ो लोग ऐसे है जिनका गुजारा एक निश्चित आमदन से होता है। यह निश्चित आमदन किसी भी तरीके की हो सकती है जैसे फैक्टरी मे मजदूरी करना आदि ।

  इसी से संबंधित छोटी सी कहानी मे आपको सुनाने जा रहा हू। सोहन जो कि दसवीं पास है। गरीब होने के कारण वह आगे पढ़ ना सका। उसके पिता जी गांव के पास वाले शहर मे मजदूरी का काम करते है। सोहन भी उसी फैक्टरी मे काम करने लगा। मजबूरी देखिए, दसवीं पास होने पर भी उसे फैक्टरी मे मजदूरी का काम करना पढ़ रहा है। उसे और कही अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी नही मिली तो उस ने घर चलाने के लिए मजबूरी मे यह काम कर लिया ।

दोनो बाप और बेटा एक ही फैक्टरी मे काम करते थे। दोनो के काम करते हुए भी घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा है। क्योंकि घर मे और भी दो छोटे भाई बहन रहते है। वह दोनो पढ़ रहे है। आजकल हर चीज महंगी हो गई है। पढ़ाई से लेकर खाने पीने की वस्तुओ सब महंगी हो चुकी है। अगर घर मे कोई बिमारी हो जाए तो उसके इलाज का खर्च अलग से। इतनी महंगाई मे दोनो की कमाई से भी घर चलाना मुश्किल हो रहा था।

मुश्किल से ही सही उस फैक्टरी से उनके परिवार का पालन पोषण चल रहा था। दोनो उस फैक्टरी मे बढ़ी मेहनत से कमाई कर रहे है। एक दिन अचानक उस फैक्टरी से सारे मजदूरो और अन्य कर्मचारियो को छुट्टी दे दी गई। सभी कर्मचारी और मजदूर हैरान थे। पूछने पर फैक्टरी के मालिक ने कहा कि पीछे से कच्चा माल नही आ रहा तब तक फैक्टरी बंद रहेगी। सोहन और उसके पिता के लिए तो अब और मुश्किल हो गया था।

   कई दिन बीत गए थे लेकिन अभी तक वो फैक्टरी नही खुली। सभी कर्मचारी और मजदूर समझ गए थे कि अब यह फैक्टरी नही खुलने वाली। हजारो परिवारो का पालन पोषण  अब बहुत मुश्किल से चलने वाला था। दूसरी कोई नौकरी ढूंढना भी बड़ी मुश्किल था। सोहन और उसके पिता को घर पर बैठे हुए एक महीने से ऊपर हो गया था। अब उन्हे घर खर्च चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा। ऐसे ही बहुत सारे मजदूरो को भी कर्ज लेना पड़ा ।

इस कहानी से यह तथ्य निकल कर सामने आता है कि बेरोजगारी कैसे समाज के ढांचे को प्रभावित करती है। परिवार के किसी एक सदस्य को रोजगार मिलने से उस परिवार का पालन पोषण हो जाता है। अगर उसी सदस्य का रोजगार चला जाए और वह दो तीन महीने के लिए घर पर बैठ जाए तो गुजारा बहुत मुश्किल से चलता है। वह परिवार कर्ज के नीचे दब जाता है और उससे बाहर निकलना बढ़ी मुश्किल होता है।

कर्ज के इलावा समाज मे और भी बुराईयां फैल जाती है। जैसे अगर कोई व्यक्ति अधिक देर तक बेरोजगार रह जाए तो वह बुरी संगति मे फंस जाता है। वह पैसे कमाने के लिए गलत साधनो का प्रयोग करने लग जाता है। जैसे चोरी करना, जुआ खेलना और लोगो को धोखा देकर पेसै ठगना। इन सभी चीजों से आमदन तो होती नही ,व्यक्ति मुसाबित मे फंस जाता है ।


No comments:

Post a Comment

Featured Post

मेहनत | Mehnat | shayari | Best Motivational shayari

कहीं तो मेहनत से बोए हुए,  खेतो के खेत डूब जाते है । और कहीं जमीन jameen पर यूं ही बिखरे हुए बीज भी उग आते है। कई तो सात जन्मों की कसमे...