इस संघर्ष भरे जीवन मे जिंदगी जब थक के अपनी शाम तक पहुंचती है तो उसे बाकी रह गया जीवन सकून के पलों मे गुजरने की उम्मीद होती है। कुछ इसी तरह यह कहानी बाप और बेटे की एक जैसी सोच से होकर गुजरती है जो दोनो को एक ही उम्मीद मे बाँध के रखती है ।
एक मजदूर अपना गांव छोड़कर एक शहर मे फैक्टरी मे काम करता था । उसकी तनख्वाह इतनी थी कि घर का गुजारा आराम से हो जाता था । उसकी पत्नी इस तनख्वाह मे से भी कुछ बचा लेती थी । तनख्वाह मे से मजदूर कुछ पेसै अच्छे बुरे वक्त के लिए भी रखता था । उसका एक बेटा और एक बेटी है, दोनो स्कूल मे पढ़ रहे है ।
यह एक ऐसा दौर होता है जिसमे पढ़ रहे बच्चो को अपने जीवन का असली मकसद नही पता होता, और वो इसे खुशी
देखते ही देखते मजदूर के बेटा और बेटी जवान हो जाते है । घर मे बेटी के विवाह की बात चलने लग पड़ती है । एक मजदूर जिस ने अपने सारी उम्र की कमाई बचा के रखी होती है, अब उसे उम्मीद होती है कि उसकी बेटी का विवाह एक अच्छे घर मे हो, ताकि उसकी आने वाली जिंदगी अच्छी तरह से कट जाए। मजदूर अपनी कमाई का बहुत सारा हिस्सा शादी के ऊपर लगा देता है , और उसकी बेटी का एक अच्छे घर मे विवाह हो जाता है । मजदूर, जब एक शाम बैठा हुआ सोच के समन्दर मे गहरी ङुबकी लगा रहा होता है , मजदूर के मन मे आता है कि उसका बेटा भी एक अच्छी नौकरी करेगा और उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा ।
मजदूर का बेटा जो डिग्री कर रहा है , पढ़ते पढ़ते उसके मन मे भी अपने भविष्य को लेकर तरह तरह के ख्याल आते है । वो किसी नौकरी पे लग के अपना भविष्य अच्छा बनाना चाहता है । जब बाप और बेटा कभी कभी इकट्ठे बैठते है तो मजदूर अपने बेटे को बताता है कि वो उस से क्या चाहता है । बेटे को कभी कभी ऐसा लगता है जैसे उसका बाप अपनी उम्मीदो का भार उस पर डाल कर खुद हल्का महसूस करना चाहता हो।
जिंदगी के रास्ते पर चलते हुए कई तरह के संघर्ष आते है और कई तरह के समझौते करने पड़ते है । इस कहानी मे आगे बढ़ते हुए जब मजदूर के बेटे की डिग्री पूरी हो जाती है । पहले तो वो सरकारी नौकरी के लिए बहुत कोशिश करता है , पर अपनी उम्मीदो पर खरा उतरते ना देखकर प्राईवेट नौकरी करने की सोचता है । एक शाम को लड़का घर पर बैठा सोच रहा होता है कि वो किसी नौकरी पे लगेगा और उसका अपना परिवार होगा , वो अपने माता-पिता के साथ एक ही घर मे रहेगा । पर कुदरत को जैसे कुछ और ही मंजूर होता है । कुदरत आदमी को बहुत बार अपने ही ढंग से चलाती है , आदमी की सोच से बिल्कुल उल्टा ।
मजदूर के बेटे को नौकरी तो मिल जाती है पर अपने शहर से दूर कही दूसरे शहर मे । यह सुनकर मजदूर खुश तो बहुत होता है पर कही ना कही वो उम्मीदें जो वो अपने लिए अपने बेटे से लगाए फिर रहा था उन पर सोचने के लिए मजबूर हो जाता है । जैसे जैसे समय बीत जाता है लड़का दूसरे शहर मे अपनी नौकरी पर सैट हो जाता है और कुछ समय बाद उसका विवाह भी हो जाता है वो अपनी पत्नी के साथ दूसरे शहर मे ही रहने लग पड़ता है । दूसरी तरफ उसके मजदूर पिता ने जो सोचा था उसके बिल्कुल उल्टा होता है ।
एक दिन जब मजदूर अपने काम से घर आता है तो शाम को अकेला बैठ के सोचता है कि ठीक इसी तरह उसके माता-पिता भी यही चाहते थे कि उनका बेटा उनके साथ रहे। पर उसे भी अपनी मजबूरी कारण घर छोड़कर दूसरे शहर मे नौकरी के लिए जाना पड़ा और अब ठीक उसी तरह उसके साथ हो रहा है । यह जिंदगी की एक सच्चाई है ।
जिंदगी कुदरत के नियमो के साथ बंधी हुई है । रोजी-रोटी के लिए इंसान को जगह जगह भटकना पड़ता है । इस जिंदगी के संघर्ष मे किसी से लगाई गई उम्मीदे बहुत बार आधे रास्ते मे रह जाती है ।
लेखक - रशपाल सिंह
एक मजदूर अपना गांव छोड़कर एक शहर मे फैक्टरी मे काम करता था । उसकी तनख्वाह इतनी थी कि घर का गुजारा आराम से हो जाता था । उसकी पत्नी इस तनख्वाह मे से भी कुछ बचा लेती थी । तनख्वाह मे से मजदूर कुछ पेसै अच्छे बुरे वक्त के लिए भी रखता था । उसका एक बेटा और एक बेटी है, दोनो स्कूल मे पढ़ रहे है ।
यह एक ऐसा दौर होता है जिसमे पढ़ रहे बच्चो को अपने जीवन का असली मकसद नही पता होता, और वो इसे खुशी
देखते ही देखते मजदूर के बेटा और बेटी जवान हो जाते है । घर मे बेटी के विवाह की बात चलने लग पड़ती है । एक मजदूर जिस ने अपने सारी उम्र की कमाई बचा के रखी होती है, अब उसे उम्मीद होती है कि उसकी बेटी का विवाह एक अच्छे घर मे हो, ताकि उसकी आने वाली जिंदगी अच्छी तरह से कट जाए। मजदूर अपनी कमाई का बहुत सारा हिस्सा शादी के ऊपर लगा देता है , और उसकी बेटी का एक अच्छे घर मे विवाह हो जाता है । मजदूर, जब एक शाम बैठा हुआ सोच के समन्दर मे गहरी ङुबकी लगा रहा होता है , मजदूर के मन मे आता है कि उसका बेटा भी एक अच्छी नौकरी करेगा और उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा ।
मजदूर का बेटा जो डिग्री कर रहा है , पढ़ते पढ़ते उसके मन मे भी अपने भविष्य को लेकर तरह तरह के ख्याल आते है । वो किसी नौकरी पे लग के अपना भविष्य अच्छा बनाना चाहता है । जब बाप और बेटा कभी कभी इकट्ठे बैठते है तो मजदूर अपने बेटे को बताता है कि वो उस से क्या चाहता है । बेटे को कभी कभी ऐसा लगता है जैसे उसका बाप अपनी उम्मीदो का भार उस पर डाल कर खुद हल्का महसूस करना चाहता हो।
जिंदगी के रास्ते पर चलते हुए कई तरह के संघर्ष आते है और कई तरह के समझौते करने पड़ते है । इस कहानी मे आगे बढ़ते हुए जब मजदूर के बेटे की डिग्री पूरी हो जाती है । पहले तो वो सरकारी नौकरी के लिए बहुत कोशिश करता है , पर अपनी उम्मीदो पर खरा उतरते ना देखकर प्राईवेट नौकरी करने की सोचता है । एक शाम को लड़का घर पर बैठा सोच रहा होता है कि वो किसी नौकरी पे लगेगा और उसका अपना परिवार होगा , वो अपने माता-पिता के साथ एक ही घर मे रहेगा । पर कुदरत को जैसे कुछ और ही मंजूर होता है । कुदरत आदमी को बहुत बार अपने ही ढंग से चलाती है , आदमी की सोच से बिल्कुल उल्टा ।
मजदूर के बेटे को नौकरी तो मिल जाती है पर अपने शहर से दूर कही दूसरे शहर मे । यह सुनकर मजदूर खुश तो बहुत होता है पर कही ना कही वो उम्मीदें जो वो अपने लिए अपने बेटे से लगाए फिर रहा था उन पर सोचने के लिए मजबूर हो जाता है । जैसे जैसे समय बीत जाता है लड़का दूसरे शहर मे अपनी नौकरी पर सैट हो जाता है और कुछ समय बाद उसका विवाह भी हो जाता है वो अपनी पत्नी के साथ दूसरे शहर मे ही रहने लग पड़ता है । दूसरी तरफ उसके मजदूर पिता ने जो सोचा था उसके बिल्कुल उल्टा होता है ।
एक दिन जब मजदूर अपने काम से घर आता है तो शाम को अकेला बैठ के सोचता है कि ठीक इसी तरह उसके माता-पिता भी यही चाहते थे कि उनका बेटा उनके साथ रहे। पर उसे भी अपनी मजबूरी कारण घर छोड़कर दूसरे शहर मे नौकरी के लिए जाना पड़ा और अब ठीक उसी तरह उसके साथ हो रहा है । यह जिंदगी की एक सच्चाई है ।
जिंदगी कुदरत के नियमो के साथ बंधी हुई है । रोजी-रोटी के लिए इंसान को जगह जगह भटकना पड़ता है । इस जिंदगी के संघर्ष मे किसी से लगाई गई उम्मीदे बहुत बार आधे रास्ते मे रह जाती है ।
लेखक - रशपाल सिंह
Written by - Rashpal singh
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