गुस्सा, अच्छी भली आँखो वाले इंसान को भी अंधा कर दे। इस अंधेपन मे किसी को क्या और कितना नुकसान हो जाए, यह तो बाद मे ही पता चलता है। कुछ ऐसी ही कहानी मेरी है । बात उन दिनो की है जब मुझे नौकरी मिली ही थी। मेरे गुस्सैल स्वभाव का दफ्तर मे अभी किसी को पता नही था ।
बचपन से ही मेरा स्वभाव गुस्सैल था। अपने साथियो और घर के लोगो से अपनी हर बात मनवाना अगर कोई ना माने तो गुस्सा, हर बात पर जल्दबाजी मानो जैसे मेरी आदत ही बन गई हो। मेरे माता-पिता ने मुझे बहुत समझाया पर मैं खुद को उन से ज्यादा समझदार मानता था ।
पढ़े कहानी - अन्तर
मेरी यही आदत दफ्तर मे भी जारी रही। अपने साथियो से छोटी छोटी बात पर बहस पडना। अगर काम ज्यादा मिल जाए तो गुस्सा आ जाना , मानो मुझे कभी भी adjustment करना आता ही ना हो।
मेरे इस स्वभाव के कारण मुझे सब नफरत करने लगे । इसी नफरत के चलते मेरे सीनियर ने मुझे ज्यादा काम दे दिया । मैंने गुस्से मे आकर काम करने से मना कर दिया और सीनियर के साथ बहस हो गई । यह बात हमारे मैनेजर के पास पहुंच गई । मैनेजर ने मुझे और मेरे सीनियर को cabin मे बुलाया । वहाँ भी मैं अपने गुस्से को कंट्रोल मे नही रख सका और मैनेजर ने मुझे सस्पेंड कर दिया ।
जब मैं घर आया मैंने अपने माता-पिता को सारी बात बताई । सब इस बात से बहुत निराशा और उदास थे लेकिन अब क्या किया जा सकता था । गुस्से के कारण मुझे बहुत नुकसान और दुख हुआ । दो दिन मैं घर पर निराश होकर बैठा रहा । मुझे इस हालत मे देखकर मेरे पिता जी ने मुझे शाम को अपने साथ समंदर किनारे टहलने के लिए जाने को कहा ।
शाम को जब हम समंदर के किनारे टहल रहे थे तो पिता जी ने मुझे एक बात बताई । उन्होंने कहा बहुत पहले समंदर मे एक बार तूफान उठा था और उसने अपने आसपास के किनारो पर रह रहे लोगो को डूबा दिया और बहुत नुकसान किया । उन्होंने कहा देखो आज समुंदर कितना शांत है और सभी को खूबसूरत लग रहा है । पिता जी के इतना कहते ही मैं समझ गया कि उनका इशारा मेरी तरफ ही है । मैं पिता जी की बात समझ चुका था ।
तब से मैं समझ गया कि समुंदर इतना विशाल होकर अपनी सीमाओं मे रहता है । अगर समुंदर मे कोई लहर ऊँची उठती भी है तो अपने आप शांत हो जाती है। इंसान का गुस्सा समंदर जैसा ही होता है अगर सीमाओं से बाहर चला जाए , अपना नुकसान तो होता ही है साथ मे अपने आसपास के लोगो को भी दुख पहुंचा देता है । इसीलिए इंसान को हमेशा गुस्से पर काबू रखना चाहिए ।
Gdd.... vry nyc
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