अनमोल ने पानी निकालने के लिए फ्रिज का दरवाजा खोला, पानी की बोतल उठाते ही अचानक से उसकी नजर फ्रिज मे पड़े लिफाफे की तरफ गई । अनमोल पहले तो लिफाफे को देख कर खुश हुआ उसे लगा कि लिफाफे मे जरूर कुछ ना कुछ तो खाने के लिए है, जो अब तक उसकी नजरो से बचा रहा । जैसे ही उसने लिफाफे को खोला, बदबू के मारे उसने अपने नाक को दबा लिया । अनमोल जोर जोर से अपनी दादी और मां को आवाज देने लगा।
अनमोल की दादी, जिसकी उम्र लगभग 70 साल होने को है, धीरे-धीरे चलकर अनमोल के पास आती है। उधर अनमोल की मां भी अनमोल की जोरदार आवाज सुनकर भागी चली आती है । अनमोल अपनी दादी से पूछता है कि इस लिफाफे मे ऐसा क्या है जो इतनी बदबू आ रही है । दादी बड़े ध्यान से लिफाफे के अन्दर पड़ी चीज को देखती है। वह चीज ऐसे लग रही है जैसे पानी मे मास के टुकड़े सड गए हो, जब ऐसा दादी ने बोला तो अनमोल की मां डर से कांपने लगी। अनमोल की मां डरी, सहमी हुई बोली कि " हमारे घर पर किसी ने टोना कर दिया है।"
ऐसा सुनते ही दादी भी होश खो बैठती है। वह सोचने लग जाती है कि कौन उनका घर को बर्बाद करने पर तुला हुआ है। अब सारा परिवार सोच और चिंता मे डूब जाता है कि कौन उनके घर यह सब रख गया । घर मे सदस्यों की बहस अलग से होने लग गई । अनमोल के पिता को भी जब यह बात पता चली तो वह अनमोल की दादी और मां को बोलने लग गए " घर मे इतना सब कुछ हो गया ओर तुम सब कहा थे। ऐसे तो हमारे घर मे कोई भी आ सकता है । तुम्हारे नाक के नीचे से घर मे कोई घुस गया और ये सब रख गया ।"
पूरे घर मे सहम और डर का माहौल बन गया । अनमोल तो यह बात सुनकर पूरी तरह से डर चुका था। अब वह फ्रिज के पास जाने से भी डरने लगा । घर मे इसकी चिंता के कारण लड़ाई और कलेश रहने लगा। अनमोल की दादी बैठे बैठे सोचती रहती कि कहीं उनके पड़ोसियों ने तो नही ऐसा किया । दादी अनमोल की मां से भी यही कहती क्या पता हमारे आसपास पड़ोस मे से ही किसी ने ऐसा काम किया हो। अनमोल की मां भी कहती है कि " हां, जरुर मोहल्ले मे से ही किसी ने ऐसा काम किया है। हमारे तरक्की किसी से देखी नही जा रही । " अनमोल की मां दादी से आगे कहती है कि " इनका व्यापार भी तो बड़ गया है। बस लोगों से यही नही देखा जा रहा । लोग हमारी खुशी देखकर खुश नही है ।"
अनमोल की मां ने यह सब अपने मायके वालो और करीबी लोगों को बताया तो सब उन्हें कोई ना कोई सलाह देने लगे । किसी ने कहा कि इस बाबा के पास जाओ वो जरूर सब कुछ बता देगा और इस तरह सभी अपनी अपनी सलाह देने लग गए । धीरे-धीरे सारे मुहल्ले मे भी यही बात फैल गई । अब सभी अनमोल की मां के सामने किसी ना किसी का नाम ले देते कि फलाने बंदे ने यह काम किया होगा । डर के मारे सारे परिवार का मन अब काम मे नही लगता था। जिस कारण सारे काम रूक से गए थे। डर के कारण अनमोल का भी पढ़ाई मे मन नही लगता था ।
एक दिन घर मे डर का माहौल ज्यादा बढ़ गया, जब अनमोल के पिता ने घर के दरवाजे पर एक रोटी देखी। अनमोल की मां ने जब यह सब देखा तो पहले वह डर गई, बाद मे वह गुस्से से लाल हो गई । अनमोल की मां गुस्से से घर के बाहर आई और गली मे खड़ी होकर ऊंची आवाज मे आस पड़ोस वालो को सुनाने लगी, " किस को हमारी खुशिया और तरक्की पसन्द नही, जिसने भी यह सब किया है वह किसी को भी छोडेंगी नहीं।" इस तरह अनमोल की मां 10 15 मिनट तक गुस्से मे सब को बोलती रही। अनमोल का पिता उसे शान्त करके घर के अन्दर ले आया।
अनमोल का पिता शाम को काम से घर वापस आया। गर्मी के दिन थे। उसने अनमोल की मां से कहा कि एक दिन वो नींबू लेकर आया था तो जरा उसे एक गिलास नींबू पानी बना दें। अनमोल की मां फ्रिज मे से नींबू निकालने गई पर उसे कहीं भी नींबू नजर नही आए। अनमोल की मां को याद आया कि वह वहीं नींबू थे जिसे वह मास के टुकड़े समझ रहे थे। वह नींबू फ्रिज मे अधिक देर तक पड़े रहने के कारण गल गए थे और वह मास के टुकड़ो की तरह दिखाई देने लग गए थे। अनमोल की मां ने यह सब अपने परिवार को बताया । तो सब का डर दूर होने लगा।
अगले दिन अनमोल का पिता सुबह जल्दी उठकर बाहर सैर करने लगा । उसने क्या देखा एक कुत्ता अपने मुँह मे एक रोटी लेकर आता है और उनके घर के दरवाजे के पास बैठकर खाने लग जाता है। दरअसल यह कुत्ता ही हर रोज एक रोटी दरवाजे के पास छोड़ जाता था । जिसे अनमोल के पिता वहम के कारण कोई टोना समझ बैठे थे । इस तरह पूरे परिवार के वहम का अन्त हो जाता है ।
बुजुर्गो का प्यार | Buzrgo ka Pyar | Hindi Kahani
सभी बच्चो को अपने दादा-दादी से बहुत प्यार होता है। यह प्यार तब और भी बढ़ जाता है अगर दादा-दादी बच्चो से दूर किसी गांव मे रहते हो। छुट्टियों मे दादा-दादी के घर जाने पर एक अलग ही खुशी और प्यार का अहसास होता है। वहाँ आसपास के घरों मे जाना और अपने जैसे बच्चो के साथ खेलना बच्चो को बहुत अच्छा लगता है। मैं और परिवार भी अक्सर छुट्टियों मे अपने दादा-दादी के घर जाया करते थे ।
जब भी जून के महीने मे छुट्टियां होती। हम दादा-दादी के पास जाने को तैयार हो जाते। हम बस से अपने गांव जाते। यह सफर भी हमे रोमांचक लगता। रास्ते मे हरे भरे खेत और पेड़ देखकर हमे अलग ही खुशी महसूस होती। बस जब भी किसी बस स्टॉप पर रूकती तो मै और मेरी बहन कुछ ना कुछ खाने को ले लेते। जब बस गांव पहुंचती थी तो वहाँ के बस स्टैंड पर दादा जी हमे लेने आ जाते थे।
घर जाते ही दादा-दादी हमें बहुत प्यार करते और खाने के लिए बहुत कुछ देते। हम जाते ही खेलने लग जाते। आसपास के बच्चे भी हमारे ही घर आ जाते। वह समय बहुत अच्छा था। गांव मे लोग मिलजुल कर रहते थे। एक दूसरे के घर आना जाना लगा ही रहता था। गांव मे सब लोग त्योहार भी मिलजुल कर मनाते थे। पर अब गांव पर आधुनिकता का असर दिखाई देने लग पड़ा है। लोग अपने काम से काम रखने लगे है। लोगो का एक दूसरो के घर आना जाना भी कम हो गया है।
हम भी अपने गांव मे अपने पड़ोसियो के घर खेलने चले जाया करते थे। उनके भी यहां हमारे जैसे छोटे छोटे बच्चे थे। हमे उनके साथ खेलना बहुत पसन्द था। वह गांव के सरपंच का भी घर था। उनका घर बहुत बड़ा था। उनका आंगन भी बहुत बड़ा था। यहा हम बहुत सारी खेल खेलते थे। सारा दिन उस आंगन मे मिट्टी के घर बनाते रहते थे। कभी कभी हम कंचे भी खेला करते थे। हमारे पड़ोसी भी हमे बहुत प्यार करते थे। वह भी हमे खाने के लिए बहुत कुछ दिया करते थे। इसी तरह से सारा दिन खेल कूद मे कब निकल जाता था पता ही नही चलता था।
जैसे जैसे स्कूल जाने के दिन नजदीक आते चले गए हमारे मन मे उदासी आने लगती थी। हमारे दादा जी को हमारे उदास चेहरे पसंद नही आते थे। फिर वो हमे बहुत सारे खिलौने और नए कपड़े ला कर दिया करते थे। दादा जी हमे बड़े प्यार से समझाते थे कि जैसे जीवन मे खेल कूद और आनंद जरूरी है वैसे ही पढ़ाई करना भी बहुत जरूरी है। जब तुम यहा से चले जाओगे तो खूब पढ़ लिख कर अच्छे इंसान बनना। कुछ ही दिनो बाद हम घर आ गए।
हमने स्कूल जाना शुरू कर दिया था। पहले चार पांच दिन तो हमारा मन नही लगा। गांव की बढ़ी याद आती थी। पर फिर दादा दादी की कही बातें याद आई। हम मन लगाकर पढ़ने लग गए। ऐसे ही पढ़ाई मे सालों-साल गुजरते चले गए । हम बीच बीच मे थोड़े दिन के लिए गांव जाया करते थे।
हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। हम अच्छी सरकारी नौकरी पर भी लग गए थे। दादा-दादी अब इस दुनिया मे नही रहे थे। अब हम जब गाँव गए तो गांव मे बहुत ज्यादा बदलाव आ चुका था। मैं जिन पड़ोसियो के घर खेलने जाया करता था वह भी शहर मे रहने के लिए चले गए थे। गांवे अब लोग एक दूसरे के घर भी नही जाते थे। समय के साथ सब बदल चुका था ।
अनमोल की दादी, जिसकी उम्र लगभग 70 साल होने को है, धीरे-धीरे चलकर अनमोल के पास आती है। उधर अनमोल की मां भी अनमोल की जोरदार आवाज सुनकर भागी चली आती है । अनमोल अपनी दादी से पूछता है कि इस लिफाफे मे ऐसा क्या है जो इतनी बदबू आ रही है । दादी बड़े ध्यान से लिफाफे के अन्दर पड़ी चीज को देखती है। वह चीज ऐसे लग रही है जैसे पानी मे मास के टुकड़े सड गए हो, जब ऐसा दादी ने बोला तो अनमोल की मां डर से कांपने लगी। अनमोल की मां डरी, सहमी हुई बोली कि " हमारे घर पर किसी ने टोना कर दिया है।"
ऐसा सुनते ही दादी भी होश खो बैठती है। वह सोचने लग जाती है कि कौन उनका घर को बर्बाद करने पर तुला हुआ है। अब सारा परिवार सोच और चिंता मे डूब जाता है कि कौन उनके घर यह सब रख गया । घर मे सदस्यों की बहस अलग से होने लग गई । अनमोल के पिता को भी जब यह बात पता चली तो वह अनमोल की दादी और मां को बोलने लग गए " घर मे इतना सब कुछ हो गया ओर तुम सब कहा थे। ऐसे तो हमारे घर मे कोई भी आ सकता है । तुम्हारे नाक के नीचे से घर मे कोई घुस गया और ये सब रख गया ।"
पूरे घर मे सहम और डर का माहौल बन गया । अनमोल तो यह बात सुनकर पूरी तरह से डर चुका था। अब वह फ्रिज के पास जाने से भी डरने लगा । घर मे इसकी चिंता के कारण लड़ाई और कलेश रहने लगा। अनमोल की दादी बैठे बैठे सोचती रहती कि कहीं उनके पड़ोसियों ने तो नही ऐसा किया । दादी अनमोल की मां से भी यही कहती क्या पता हमारे आसपास पड़ोस मे से ही किसी ने ऐसा काम किया हो। अनमोल की मां भी कहती है कि " हां, जरुर मोहल्ले मे से ही किसी ने ऐसा काम किया है। हमारे तरक्की किसी से देखी नही जा रही । " अनमोल की मां दादी से आगे कहती है कि " इनका व्यापार भी तो बड़ गया है। बस लोगों से यही नही देखा जा रहा । लोग हमारी खुशी देखकर खुश नही है ।"
अनमोल की मां ने यह सब अपने मायके वालो और करीबी लोगों को बताया तो सब उन्हें कोई ना कोई सलाह देने लगे । किसी ने कहा कि इस बाबा के पास जाओ वो जरूर सब कुछ बता देगा और इस तरह सभी अपनी अपनी सलाह देने लग गए । धीरे-धीरे सारे मुहल्ले मे भी यही बात फैल गई । अब सभी अनमोल की मां के सामने किसी ना किसी का नाम ले देते कि फलाने बंदे ने यह काम किया होगा । डर के मारे सारे परिवार का मन अब काम मे नही लगता था। जिस कारण सारे काम रूक से गए थे। डर के कारण अनमोल का भी पढ़ाई मे मन नही लगता था ।
एक दिन घर मे डर का माहौल ज्यादा बढ़ गया, जब अनमोल के पिता ने घर के दरवाजे पर एक रोटी देखी। अनमोल की मां ने जब यह सब देखा तो पहले वह डर गई, बाद मे वह गुस्से से लाल हो गई । अनमोल की मां गुस्से से घर के बाहर आई और गली मे खड़ी होकर ऊंची आवाज मे आस पड़ोस वालो को सुनाने लगी, " किस को हमारी खुशिया और तरक्की पसन्द नही, जिसने भी यह सब किया है वह किसी को भी छोडेंगी नहीं।" इस तरह अनमोल की मां 10 15 मिनट तक गुस्से मे सब को बोलती रही। अनमोल का पिता उसे शान्त करके घर के अन्दर ले आया।
अनमोल का पिता शाम को काम से घर वापस आया। गर्मी के दिन थे। उसने अनमोल की मां से कहा कि एक दिन वो नींबू लेकर आया था तो जरा उसे एक गिलास नींबू पानी बना दें। अनमोल की मां फ्रिज मे से नींबू निकालने गई पर उसे कहीं भी नींबू नजर नही आए। अनमोल की मां को याद आया कि वह वहीं नींबू थे जिसे वह मास के टुकड़े समझ रहे थे। वह नींबू फ्रिज मे अधिक देर तक पड़े रहने के कारण गल गए थे और वह मास के टुकड़ो की तरह दिखाई देने लग गए थे। अनमोल की मां ने यह सब अपने परिवार को बताया । तो सब का डर दूर होने लगा।
अगले दिन अनमोल का पिता सुबह जल्दी उठकर बाहर सैर करने लगा । उसने क्या देखा एक कुत्ता अपने मुँह मे एक रोटी लेकर आता है और उनके घर के दरवाजे के पास बैठकर खाने लग जाता है। दरअसल यह कुत्ता ही हर रोज एक रोटी दरवाजे के पास छोड़ जाता था । जिसे अनमोल के पिता वहम के कारण कोई टोना समझ बैठे थे । इस तरह पूरे परिवार के वहम का अन्त हो जाता है ।
बुजुर्गो का प्यार | Buzrgo ka Pyar | Hindi Kahani
सभी बच्चो को अपने दादा-दादी से बहुत प्यार होता है। यह प्यार तब और भी बढ़ जाता है अगर दादा-दादी बच्चो से दूर किसी गांव मे रहते हो। छुट्टियों मे दादा-दादी के घर जाने पर एक अलग ही खुशी और प्यार का अहसास होता है। वहाँ आसपास के घरों मे जाना और अपने जैसे बच्चो के साथ खेलना बच्चो को बहुत अच्छा लगता है। मैं और परिवार भी अक्सर छुट्टियों मे अपने दादा-दादी के घर जाया करते थे ।
जब भी जून के महीने मे छुट्टियां होती। हम दादा-दादी के पास जाने को तैयार हो जाते। हम बस से अपने गांव जाते। यह सफर भी हमे रोमांचक लगता। रास्ते मे हरे भरे खेत और पेड़ देखकर हमे अलग ही खुशी महसूस होती। बस जब भी किसी बस स्टॉप पर रूकती तो मै और मेरी बहन कुछ ना कुछ खाने को ले लेते। जब बस गांव पहुंचती थी तो वहाँ के बस स्टैंड पर दादा जी हमे लेने आ जाते थे।
घर जाते ही दादा-दादी हमें बहुत प्यार करते और खाने के लिए बहुत कुछ देते। हम जाते ही खेलने लग जाते। आसपास के बच्चे भी हमारे ही घर आ जाते। वह समय बहुत अच्छा था। गांव मे लोग मिलजुल कर रहते थे। एक दूसरे के घर आना जाना लगा ही रहता था। गांव मे सब लोग त्योहार भी मिलजुल कर मनाते थे। पर अब गांव पर आधुनिकता का असर दिखाई देने लग पड़ा है। लोग अपने काम से काम रखने लगे है। लोगो का एक दूसरो के घर आना जाना भी कम हो गया है।
हम भी अपने गांव मे अपने पड़ोसियो के घर खेलने चले जाया करते थे। उनके भी यहां हमारे जैसे छोटे छोटे बच्चे थे। हमे उनके साथ खेलना बहुत पसन्द था। वह गांव के सरपंच का भी घर था। उनका घर बहुत बड़ा था। उनका आंगन भी बहुत बड़ा था। यहा हम बहुत सारी खेल खेलते थे। सारा दिन उस आंगन मे मिट्टी के घर बनाते रहते थे। कभी कभी हम कंचे भी खेला करते थे। हमारे पड़ोसी भी हमे बहुत प्यार करते थे। वह भी हमे खाने के लिए बहुत कुछ दिया करते थे। इसी तरह से सारा दिन खेल कूद मे कब निकल जाता था पता ही नही चलता था।
जैसे जैसे स्कूल जाने के दिन नजदीक आते चले गए हमारे मन मे उदासी आने लगती थी। हमारे दादा जी को हमारे उदास चेहरे पसंद नही आते थे। फिर वो हमे बहुत सारे खिलौने और नए कपड़े ला कर दिया करते थे। दादा जी हमे बड़े प्यार से समझाते थे कि जैसे जीवन मे खेल कूद और आनंद जरूरी है वैसे ही पढ़ाई करना भी बहुत जरूरी है। जब तुम यहा से चले जाओगे तो खूब पढ़ लिख कर अच्छे इंसान बनना। कुछ ही दिनो बाद हम घर आ गए।
हमने स्कूल जाना शुरू कर दिया था। पहले चार पांच दिन तो हमारा मन नही लगा। गांव की बढ़ी याद आती थी। पर फिर दादा दादी की कही बातें याद आई। हम मन लगाकर पढ़ने लग गए। ऐसे ही पढ़ाई मे सालों-साल गुजरते चले गए । हम बीच बीच मे थोड़े दिन के लिए गांव जाया करते थे।
हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। हम अच्छी सरकारी नौकरी पर भी लग गए थे। दादा-दादी अब इस दुनिया मे नही रहे थे। अब हम जब गाँव गए तो गांव मे बहुत ज्यादा बदलाव आ चुका था। मैं जिन पड़ोसियो के घर खेलने जाया करता था वह भी शहर मे रहने के लिए चले गए थे। गांवे अब लोग एक दूसरे के घर भी नही जाते थे। समय के साथ सब बदल चुका था ।