पूरे गाँव मे बकरियां सिर्फ एक ही शख्स के पास थी, वो था लखू। लखू एक गरीब अनपढ़ परिवार से संबंधित था और लखू खुद भी अनपढ़ था। बस उसकी इसी अनपढ़ता का फायदा सारा गांव उठाता । पर वही कुछ ऐसे लोग भी थे, जिन्हे उसकी इस हालत पर दया आ जाती । लखू सारा दिन धूप छाओ मे बकरियां चराता रहता । लखू बकरियों का ध्यान बखूबी रखता ।
अनपढ़ होने के कारण लखू को हिसाब-किताब करने मे बहुत परेशानी रहती थी । पर लखू इस बात को ज्यादा गंभीरता से नही लेता था। लखू की एक विशेष बात थी, उसे नए नोट बहुत पसंद थे। वही गांव वाले अक्सर बकरी के दूध के हिसाब मे उसे 10 20 रूपए कम ही देते। जिस रास्ते से लखू बकरियां चराने के लिए जाया करता था, वही रास्ते मे एक दुकान पड़ती । वहां पर लोग बैठे रहते। वह लखू को आते जाते छेड़ते रहते और उसकी अनपढ़ता का मजाक भी उड़ाते।
गांव का एक पढ़ा लिखा आदमी राजू भी उस दुकान पर बैठा रहता । वह अक्सर ही लखू से बकरी का दूध खरीदता और सभी लोगों की तरह दस बीस रुपए कम ही देता । एक दिन लखू अपनी बकरियां लेकर दुकान के सामने से गुजर रहा था । राजू ने लखू को रोक लिया, और साठ रूपये का बकरी का दूध देने को कहा। उस समय बीस रुपए के नए नोट आए ही थे और गांव मे दो तीन जन के पास ही ये नए बीस के नोट थे।
लखू ने राजू से बोला कि आज तो उसे बीस के नए नोट चाहिए । राजू ने जल्दी से अपनी जेब से दो बीस के नए नोट निकाले और लखू को देते हुए कहा, " लो लखू भैया, बड़े किस्मत वाले हो। जो बीस के नए नोट रखने को मिल गए। संभाल कर रखना इनकी कीमत तो सौ के नोट से भी ज्यादा है।" यह सुनकर पास बैठे लोग ठहाके मारकर हंसने लगे । उनमे से एक ने राजू की बात को आगे बढाते हुए कहा, " लखू रख लो ये अनमोल बीस के नोट ।" इतना कहकर फिर से ठहाके लगा कर हंसने लगे । लखू तो बस बीस के नए नोट देखकर खुश था, उसे यह नही पता था कि राजू ने उसे बीस रुपए कम दिए। लखू बीस के नोटों को खुशी से निहारते हुए वहां से चला गया ।
गांव मे लखू को मूर्ख बनाने वाले लोग तो बहुत थे वही कुछ लोग लखू का अच्छा भी चाहते थे। उन्ही मे से लखू की चाची थी। चाची से लखू की यह हालत देखी नही जाती थी। कुछ दिनो बाद चाची लखू के लिए एक आठ कक्षा पढ़ी हुई लडकी का रिश्ता ले आई । उसके कुछ दिनो बाद लखू की शादी भी हो गई । लखू की घरवाली रमा थोड़ा पढ़ी लिखी होने के कारण उसे पैसे का हिसाब किताब आता था। उसने देखा कि गांव के लोग उसे किस तरह बेवकूफ बना के बकरी के दूध के लिए कम पैसे दे रहे है।
एक दिन उसने लखू से यह सब बातें कही तो लखू ने रमा से कहा कि अब से वह घर से ही बकरी का दूध बेचेगा, और रमा पैसे का हिसाब-किताब देखेगी। कुछ ही दिनो बाद बरसाते होने लगी । ज्यादा बारिश के चलते पूरे गांव डेंगू फैल गया। लोग मे हाहाकार मच गई । वही डाक्टरों ने लोगो को बकरी का दूध अधिक से अधिक पीने की सलाह दी। राजू जो लखू को सबसे अधिक लूटा करता था उसे भी डेंगू हो गया था ।
डाक्टरी सलाह के मुताबिक उसने बकरी का दूध पीने की सोची । डेंगू के कारण दूध के भाव असमान छूने लगे थे। राजू बकरी का दूध लेने के लिए लखू के घर गया । राजू ने लखू से सौ रुपए का दूध देने के लिए कहा और हमेशा की तरह लखू को बीस रुपए कम दे दिए। पर लखू ने इस बार पैसे अपनी पत्नी रमा को दे दिए । रमा ने पैसे गिने तो उसमे से बीस रुपए कम थे। रमा ने राजू को आंखे दिखाते हुए कहा कि "बीस रुपए कम है , बीस रुपए ओर दो। अब ये दस बीस की लूटपाट नही चलेगी ।" इतना सुनते ही राजू शर्मिंदा सा हो गया । उसने अपनी जेब से बीस का नोट निकाला और लखू को नोट देकर वहा से चला गया ।
Written by - Rashpal Singh
गांव छोड़ने की मजबूरी ।। Hindi Story || Gao Choddne ki Majbori
90 के दशक मे अरब देशो मे कंस्ट्रक्शन का काम इतना बढ़ गया कि अरब देशो को मजदूर बाहर के देशो से मंगवाने पड़े। इस का असर भारतीय उपमहाद्वीप पर ज्यादा पड़ा। लोग ज्यादा पैसा कमाने के लिए अरब देशो की और चल पड़े। इन लोगो मे गरीब मजदूरो की संख्या ज्यादा थी। अपने देशो मे कम मजदूरी मिलने के कारण उन्हे काम के लिए बाहर देशो मे जाना पड़ा। लेकिन यह कोई पक्का रोजगार ना था।
मैं भी एक गांव मे पैदा हुआ हो। मेरा जन्म 1985 मे हुआ था। उस समय मे मेरे गांवे खेती का काम ज्यादा था। लोग कच्चे पक्के घरो मे खुश थे। लोग केवल अच्छा खाना खाकर खुश थे। मेरे गांव के सभी घरो मे रौनक रहती थी। लेकिन जैसे जैसे देश मे आधुनिकीकरण बढ़ता गया, वैसे ही लोगो की जरूरतें और अधिक पैसा कमाने की चाहत बढ़ती गयी। गांव मे पहले सिर्फ दो घरो से ही लोग पैसा कमाने के लिए बाहर देश मे गए थे ।
लेकिन जैसे ही लोगो को पता चलने लगा कि अरब देशो मे रोजगार ज्यादा है तो वह भी जाने की सोचने लगे। इसी सोच से दलाली का कारोबार सामने आया। ऐसे दलाल जो पैसा लेकर लोगो को अरब देशो मे मजदूरी का काम और वीजा दिलवाते थे। 90 के दशक के आते आते यह कारोबार बहुत बढ़ गया। भारतीय उपमहाद्वीप से जाने मजदूरो की संख्या भी बहुत बढ़ गई। मेरे गांव मे भी अब बहुत से मध्यमवर्गीय परिवारो के लोग मजदूरी के लिए अरब देशो मे चले गए थे ।
आज 2019 मे भी यह सिलसिला जारी है। कुछ समय पहले एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा यह रिपोर्ट दी गई कि अरब देशो मे जाने वाले लोगो मे सबसे ज्यादा संख्या भारतीयो की है। इसी समय दौरान कुछ ऐसे दलाल भी आए जो लोगो को ठगते रहे। गरीब लोगो का पैसा लूट कर यह दलाल भाग जाते थे, लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी लोगो मे अरब देशो मे जाने की चाहत कम ना हुई ।
How to make more money, European countries became the center of attraction.
अरब देशो के साथ साथ यूरोपीयन देशो मे भी जाने का मुकाबला चल रहा था। यूरोपीयन देशो मे लोग 90 के दशक से पहले भी जा रहे थे। फर्क बस इतना था कि इन देशो मे केवल वही लोग जा रहे थे जिनके पास पहले से अधिक पैसा था। उस समय मे लोग दलालो को बहुत अधिक पैसा दिया करते थे, और यह खबरे भी सामने आती थी कि लोग गैरकानूनी तरीके से बाहर जा रहे है।
यूरोप और अमेरिका के देशो मे अरब देशो से कमाई भी ज्यादा होती है। वहा का जीवन स्तर भी बहुत अच्छा था। लेकिन वहा से वापस आकर लोग यहा पर भी वैसे ही रहने लगे। वहा की बोली बोलना, अच्छे चमकदार कपड़े पहनना और महंगी दावतें करना। इन सब चीजों का असर यहां पर रह रहे लोगो पर भी दिखाई देने लगी। उनके मन मे भी चाहत पैदा होने लगी कि वह भी महंगे कपड़े पहने, बड़ी बड़ी गाड़ियों मे घूमे और महंगी दावते करे।
आज के समय मे जाने का ढंग बदल गया है। यूरोप, अमेरिका और आस्ट्रेलिया जाने वालो की संख्या काफी बढ़ गई है। आज लोग इन देशो पढ़ाई करने के लिए कानूनी तरीके से जाने लगे है। वहा जाकर पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करते है। कुछ सालों बाद वहा की नागरिकता भी हासिल कर लेते है। मैं अपने गांव की ही बात बतओ तो मेरा आधे से ज्यादा गांव ऐसे ही किसी दूसरे देश मे बसने लगा है।
Written by - Rashpal Singh
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